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आचार्यश्री तुलसी
डा० सम्पूर्णानन्द
भूतपूर्व मुख्य मन्त्री, उत्तरप्रदेश मेरी अनुभूति
अणव्रत-आन्दोलन के प्रवर्तक प्राचार्यश्री तुलमी राजनीतिक क्षेत्र से बहुत दूर हैं। किसी दल या पार्टी मे सम्बन्ध नहीं रखते। किसी वाद के प्रचारक नहीं हैं, परन्तु प्रसिद्धि प्राप्त करने के इन सब मागों से दूर रहते हुए भी वे इस काल के उन व्यक्तियों में हैं, जिनका न्यूनाधिक प्रभाव लाखों मनुष्यों के जीवन पर पड़ा है। वे जैन धर्म के सम्प्रदाय-विशेष के अधिष्ठाता है, इसीलिए प्राचार्य कहलाते हैं। अपने अनुयायियों को जैन धर्म के मूल सिद्धान्तों का अध्यापन कराते ही होंगे, श्रमणों को अपने सम्प्रदाय-विशेष के नियमादि की शिक्षा-दीक्षा देते ही होंगे; परन्तु किमी ने उनके या उनके अनयायियों के मुंह से कोई ऐसी बात नहीं सुनी जो दूसरों के चित्त को दुखाने वाली हो।
भारतवर्ष की यह विशेषता रही है कि यहां के धार्मिक पर्यावरण की धर्म पर आस्था रखी जा सकती है और उसका उपदेश किया जा सकता है। प्राचार्यश्री तुलसी एक दिन मेरे निवास स्थान पर रह चुके है। मैं उनके प्रवनन मन चका है। अपने सम्प्रदाय के आनागें का पालन तो करते ही हैं, चाहे अपरिचित होने के कारण वे पानार दूसरों को विचित्र से लगते हों और वर्तमान काल के लिए कुछ अनुपयुक्त भी प्रतीत होते ही; परन्तु उनके प्राचारण और बातचीत में ऐसी कोई बात नहीं मिलेगी जो अन्य मतावलम्बियों को अरुचिकर लगे। भारत सदा मे तपस्वियों का आदर करता पाया है। उपासना शैली और दार्शनिक मन्तव्यों का मादर करना अरबारम्य होते हुए भी हम चरित्र और त्याग के मामने सिर भकाते हैं। हमारा नो यह विश्वास है कि:
यत्र तत्र समये यथा तथा, योऽसि सोऽस्यभिषया यथा तथा जिस किमी देश, जिम किसी समय, महापुरुष का जन्म हो, वह जिम किसी नाम से पुकारा जाता हो, वीतराग तपस्वी पुरुष सदैव ग्रादर का पात्र होता है। इसलिए हम मभी आचार्य तुलसी का अभिनन्दन करते हैं। उनके प्रवचनो से उस तत्त्व को ग्रहण करने की अभिलाषा रखते हैं जो धर्म का मार और सर्वम्व है, तथा जो मनप्य मात्र के लिए कल्याणकारी है।
भारतीय संस्कृति ने धर्म को सदैव ऊँचा स्थान दिया है। उसकी परिभाषाएं ही उसकी व्यापकता की द्योतक हैं। कणाद ने कहा है यतोभ्युदयनिःश्रेयससिद्धिः स धर्म: जिसमे इस लोन और परलोक में उन्नति हो और परम पुरुषार्थ की प्राप्ति हो, वह धर्म है। मनु ने कहा-धारणा धर्मः समाज को जो धारण करता है, वह धर्म है । व्यास कहते हैधर्मादर्थवच कामाच, स धर्मः किन्न सेव्यते। धर्म से प्रथं और काम दोनों बनते हैं, फिर धर्म का सेवन क्यों नहीं किया जाता? इस पाठ को भला कर भारत अपने को, अपनी भारतीयता को खो बैठेगा; न वह अपना हित कर सकेगा और म संसार का कल्याण ही कर सकेगा। भौतिकता की घुड़-दौड़
इस समय जगत में भौतिक वस्तुओं के लिए जो घुड-दौड़ मची हुई है, भारत भी उसमें सम्मिलित हो गया है । भौतिक दृष्टि से सम्पन्न होना पाप नहीं है, अपनी रक्षा के साधनों से सज्जित होना बुरा नहीं है; परन्तु भारत इस दौड़