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संकल्प की सम्पन्नता पर
मुनिश्री महेन्द्रकुमारजी 'प्रथम'
प्राचार्यश्री के चौबीसव पदारोहण दिवस के उपलक्ष पर कलकत्ता में मैंने एक संकल्प किया था। वह मैंने उसी दिन लिखकर प्राचार्यश्री को निवेदित भी कर दिया था। उसकी भाषा थी-"धवल समारोह की सम्पन्नता तक ग्यारह हजार पृष्ठों के साहित्य का निर्माण, सम्पादन प्रादि करने का प्रयत्न करूँगा।" उसके अनन्तर ही मैं अपने कार्य में जुट पड़ा। प्राचार्यश्री की कृतियाँ, प्रवचन व यात्राएं सम्पादित करने व लिखने की दिशा में तथा तत्सम्बन्धी अन्य साहित्यिक कार्य आगे बढ़ा। नाना दुविधाएं अस्वाभाविक रूप से सामने आई। फिर भी कुल मिलाकर मैं देखता हूँ तो मुझे प्रसन्नता है कि मैं अपने विहित संकल्प की सम्पन्नता पर पहुंच गया हूँ। आज जब कि प्राचार्यश्री तुलसी का देश तथा बाहर के विद्वान् अभिनन्दन कर रहे हैं; मैं भी उस साहित्यिक भेंट के द्वारा अपनी हार्दिक श्रद्धा अर्पित करता है।
जीवन्त और प्राणवन्त व्यक्तित्व
श्री जैनेन्द्रकुमार
प्राचार्यश्री तुलसी उन पुरुषों में है, जिनके व्यक्तित्व से पद कभी ऊपर नहीं हो पाता। वे जैनमत के तेरापंथी सम्प्रदाय के पट्टधर प्राचार्य हैं और इस पद की गरिमा और महिमा कम नहीं है । वे एक ही साथ आध्यात्मिक और लौकिक हैं। किन्तु तुलसी इतने जीवन्त और प्राणवन्त व्यक्ति हैं कि उस आसन का गुरुत्व स्वयं फीका पड़ सकता है । वेश-भूषा से वे जैनाचार्य हैं, किन्तु मान्तरिक निर्मलता और संवेदन-क्षमता से वे सभी मत और सभी वर्गों के प्रात्मीय बन सके हैं। मेरा जितना सम्पर्क प्राया है, मैंने उन्हें सदा जागृत व तत्पर पाया है। शैथिल्य कहीं देखने में नहीं पाया। प्रमाद और अवसाद उनमें या उनके निकट टिक नहीं पाता। आसपास का वातावरण उनकी कर्मशीलता से चैतन्य और उन्नत बना दिखता है। परिस्थित से हारने वाले वे नही हैं, प्रास्था के बल से उसे चुनौती ही देते रहते हैं। परम्परा से उच्छिन्न नहीं हैं, लेकिन नव्यता के प्रति भी उद्यत हैं। उनकी नेतृत्व की क्षमता अभिनन्दनीय है। नेतृत्व उस वर्ग का जिसका प्रत्येक सदस्य निस्पृह, निस्वार्थ और सर्वथा मुक्त हो, प्रासान काम नहीं है । किसी प्रकार का लोभ
और भय वहाँ व्यवस्था में सहारा नहीं दे सकता। अन्तर्भूत आत्मतेज ही इस नैतिक नेतृत्व को सम्भव बनाये रख सकता है। तुलसी में उसी का प्रकाश दीखता है और मझे उनके सान्निध्य से सदा लाभ हुआ है। इस अवसर पर मैं अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि उनके अभिनन्दन में अर्पित करताहूँ।