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भारतीय संत परम्परा के एक संत
डा० युद्धवीर सिंह अध्यक्ष, प्रौद्योगिक सलाहकार परिषद्, दिल्ली प्रशासन
mari प्रवर श्री तुलसी से मेरा सम्पर्क आज से लगभग कोई प्राठ दश वर्ष पूर्व स्थापित हुमा । उसके बाद उनके दर्शन और उनके भाषण सुनने का लगातार अवसर मिलता रहा। उनकी कृपा से मैंने तेरापंथ, जिसके वे श्राचार्य हैं, उसक कुछ साहित्य प्रादि और प्राचार्यश्री भिक्षु का जीवन चरित्र भी पड़ा।
प्राचार्यश्री तुलसी भारत के सन्तों की परम्परा में एक सन्त तुल्य हैं आपकी वाणी में रस है, आपके सम्पर्क में मनुष्य 'अपनी प्रात्मा का उत्थान होते हुए अनुभव करता है। ग्रापका जीवन तपस्वी जीवन है और आपका व्यक्तित्व आकपंक है। एक छोटी-सी सम्प्रदाय के नेता होते हुए भी आपने हर मजहब और हर प्रान्त के अच्छे-अच्छे लोगों को प्राकषित किया है। आपके श्राचार्य-काल के पच्चीस वर्ष पूर्ण होने के इस शुभ अवसर पर मैं आपके चरणों में अपनी हार्दिक श्रद्धांजलि समर्पित करना है।
आपने नैतिकता की ओर विशेष ध्यान दिया और उसी के लिए प्रणुद्रत ग्रान्दोलन चलाया। आन्दोलन में बहुत से लोग सम्मिलित हुए और निःसन्देह उसका असर भी लोगों पर पड़ा है। मेरी कुछ ऐसी धारण है कि यदि श्राचार्यप्रवर एक साम्प्रदायिक प्राचार्य न होकर मुक्त होते हुए ऐसा आन्दोलन चलाते तो उसका व्यापक असर होता । आपके एक सम्प्रदाय के प्राचार्य होने के कारण जनता का ध्यान सम्भवतः इतना उस ओर आकर्षित न हुआ हो, जितना होना चाहिए था। फिर भी आपके त्याग, तपस्या और व्यक्तिगत प्रभाव से प्रभावित होकर बहुत से लोगों का नैतिक उत्थान हुचा है और होगा।
मेरी ईश्वर से हार्दिक प्रार्थना है कि प्राचार्य प्रवर दीर्घायु हों और उनको जो शिष्य मिले, वे उनके कार्य को मागे बड़ाएं और वे शिष्य न केवल उनके पंथ में बल्कि उसके बाहर भी मिले, जिससे उनका धन्युपयोगी और अत्यावश्यक अणुव्रत आन्दोलन देश में व्यापक रूप धारण करके देश की बाचार-हीनता और गिरती हुई नैतिकता को रोकने में समर्थ हो; क्योंकि स्वतन्त्र भारत सर्वथा उन्नत तभी होगा, जब त्याग और तपस्या एवं सत्य और अहिंसा के मूल सिद्धान्तों को धारण करके उनका पाचार ऊंचा होगा। प्राचार्यजी को में एक बार फिर नमस्कार करता है और उनके प्रयत्नों की सफलता के लिए प्रार्थना करता है।