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सन्तुलित व्यक्तित्व साहू शान्तिप्रसाद जैन
श्री प्राचार्य तुलसीजी महाराज ने लगभग दो वर्ष पूर्व जब एक पूरा चातुर्मास कलकले में व्यतीत किया तो मुझे अनेक बार उनके निकट सम्पर्क में आने का प्रय सर मिला। दो दिन उनका वास मेरे निवास स्थान पर भी रहा । उनका संयम उनकी साधु वृत्ति के अनुरूप तो है ही, मुझे सबसे अधिक प्रभावित किया उनके सन्तुलित व्यक्तित्व की उस पावन मधुरता ने जो संयम का अलंकार है। उनका तस्वभ्रदान जितना परम्परागत है, उससे अधिक उसमें वे अंग है जो उनके अपने चिन्तन, मनन और धात्मानुभाव से उपजे हैं। उनकी जीवनचर्या का परम्पराबद मार्ग कितना कठिन और कष्टसाध्य है। मैंने पाया है कि प्राचार्य श्री दूसरों के श्राग्रहों को पनौती नही देते, ननौतियों को आमंत्रित करते हैं और दृष्टि का सामंजस्य खोजते हैं। तस्वचर्चा और धार्मिक प्रवचन को उन्होंने मनुष्य के दैनिक जीवन की समस्याओं से जोड़ कर धर्म को जीवन की गति और हृदय का स्पन्दन दिया है। अणुव्रतों की व्यवस्था जिन प्राचार्यों ने की थी, उनके लिए ये व्रत समाज के नैतिक गंगटन और निराकुल संरक्षण के साधारभूत सिद्धान्त थे ज्यों-ज्यों धर्म जीवन से विच्छिन्न होकर रूढ़ होता गया, अणुव्रत की महत्ता उसी अनुपात में शास्त्रगत अधिक और जीवनगत कम हो गयी। प्रणयत चर्चा की सार्थकता आन्दोलन के रूप में जो भी हो, आचार्य श्री तुलसी को इस बात का श्रेय प्राप्त है कि उन्होंने धनों का प्रतिपादन युग के संदर्भ में किया और व्यापक स्तर पर समाज का प्यान केन्द्रित किया।
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आचार्यश्री तुलगी धवल समारोह के अवसर पर मैं अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ ।
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आशा की झलक
श्री त्रिलोकसिंह
नेता, विरोधी बल, उ० प्र० विधान सभा
श्राचार्यश्री तुलसी प्राधुनिक युग के उन लोगों में में है, जिन्होंने समाज के उत्थान के लिए महान प्रयत्न किया है। उनके द्वारा संचालित प्रत चान्दोलन दरअसल गिरते हुए मानव को उठाने के लिए महान प्रयत्न है। कहने को तो वह छोटे-छोटे व्रत है, किन्तु उनके अपनाने के बाद कोई ऐसी बात नहीं रह जानी जो मनुष्य के विकास में बाधा पहुँचाये।
सच बात तो यह है कि वे समय के खिलाफ चन्न रहे हैं। इस समय ऐसा वातावरण है कि चारों और डील खान नजर माती है । समाज बजाय जाति-विहीन होने के मर्यादा विहीन होता जा रहा है। ऐसे समय में किसी का यह प्रयत्न कि नई मर्यादा कायम हो, साधारण बात नहीं है। प्राचार्यजी जो कार्य कर रहे हैं. उससे इस देश में भाषा की झलक निकलनी मालूम होती है। मुझे इसमें सन्देह नहीं है कि समाज का कल्याण इनके बताये हुए रास्ते से हो सकता है। मुझे इसमें भी सन्देह नहीं कि जिस प्रकार वे इस प्रान्दोलन का संचालन कर रहे हैं, उसमें अवश्य सफल होंगे।