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अध्याय 1
अणुव्रत, प्राचार्यश्री तुलसी पौर विश्व-शान्ति
द्वेष, घृणा और अनैतिकता के विरुद्ध प्राचार्यश्री तुलसी ने जो अान्दोलन प्रारम्भ किया है, वह अब सम्पूर्ण देश में व्याप्त है। प्रणवत का अभिप्राय है उन छोटे-छोटे व्रतों का धारण करना, जिनसे मनुष्य का चरित्र उन्नत होता है। सरकारी कर्म
चारी, किसान, व्यापारी, उद्योगपति, अपराधी और अनीति के पोषक लोगों ने भी अण्वत को धारण कर अपने जीवन . को स्वच्छ बनाने का यत्न किया है। कठोर कारादण्ड भोगने के बाद भी जिन अपराधियों के चरित्र में सुधार नहीं हमा, बे प्रणवती बनने के बाद सच्चरित्र और नीतिवान् हुए। इस प्रकार अणुव्रत मानव-हृदय की उन बुराइयों का उन्मूलन करता है जो युद्ध का कारण बनती हैं। प्राचार्यश्री तुलसी का मैत्री-दिवस शान्ति और सद्भावना का सन्देश देता है।
अमेरिका के भूतपूर्व राष्ट्रपति प्राइजन होवर और सोवियत प्रधानमंत्री श्री निकिता र श्चेव के मिलन के अवसर पर प्राचार्यश्री तुलसी ने शान्ति और मैत्री का जो सन्देश दिया था, उसे विस्मृत नहीं किया जा सकता। अन्त। राष्ट्रीय तनाव और संघर्ष को रोकने की दिशा में अणुव्रत-आन्दोलन के प्रवर्तक आचार्यश्री तुलसी को उल्लेखनीय सफलता मिली है। उन्होंने विभिन्न धर्मों और विश्वासों के मध्य समन्वय स्थापित कराने का प्रयास किया है। यही प्राचार्यश्री तुलसी के अणुव्रत-आन्दोलन की सबसे बड़ी विशेषता है। विश्व-शान्ति के प्रसार में उल्लेखनीय योग-वान
अन्तर्राष्ट्रीय विचारकों के मन में प्राचार्यश्री तुलसी ने अणुव्रत के माध्यम से विश्व-शान्ति और सद्भावना के प्रसार में उल्लेखनीय योग-दान किया है। हिंसा की दहकती हुई ज्वाला पर वे अहिंसा का शीतल जल छिड़क रहे हैं। प्राचार्यश्री तुलसी का अणुव्रत-आन्दोलन अब केवल भारत तक ही सीमिन नहीं है, बल्कि उसका प्रसार विदेशों में भी हो गया है । हिमालय से कन्याकुमारी नक सम्पूर्ण भारत का पैदल भ्रमण करके प्राचार्यश्री तुलमी ने अणुव्रत का जो मन्देश दिया है, उसमे राष्ट्र के चारित्रिक उत्थान में मूल्यवान सहयोग मिला है। अगर मंमार के सभी भागों में लोग अणवतों को ग्रहण करें तो युद्ध की सम्भावना बहुत अंशों तक समाप्त हो जायेगी। विश्व युद्ध को रोकने के लिए आचार्यश्री तुलमी का अणुव्रत एक अमोघ अस्त्र है। यूरोप में चलने वाले 'नैतिक पुनरुत्थान आन्दोलन' की तुलना में अणुव्रत-आन्दोलन का महत्त्व अधिक है। अगर संसार के विशिष्ट राजनीतिज्ञ अणुव्रतों के प्रति अपनी प्रास्था प्रकट करें तो युद्ध का निवारण करना प्रामान हो सकता है। केनेडी, मैकमिलन, दगाल और साइचेव जैसे राजनीतिज्ञ जिस दिन अणवन ग्रहण कर लेंगे, उमी दिन युद्ध की सम्भावना समाप्त हो जायेगी।
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