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________________ देश के महान आचाय श्री जयसुखलाल हाथी विच त् उपमंत्री, भारत सरकार किशोर के लिए एक कसौटी दुनिया में सभी संतों के जीवन में एक विशेषता होती है, वही विशेषता प्राचार्यश्री तुलसी के जीवन में भी दिखाई देती है। उनके बाल्यकाल में ही उनकी महानता के चिह्न दिखाई देने लगे थे। बचपन में ही उन्होंने ऐसे गुणों का परिचय दिया, जिनसे यह पता चलता था कि वे भविष्य में एक महान् धर्म गुरु बनेंगे । ग्यारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने दीक्षा लेने की इच्छा प्रकट की। उनके परिवार के सभी लोगों को बड़ा प्राश्चर्य हुआ कि ग्यारह वर्ष का किशोर इननी कम अवस्था में दीक्षा लेने की बात कैसे सोच सकता है। उनके बड़े भाई अनुमति देने को तैयार नहीं थे, किन्तु किगोर तुलसी की अन्तरात्मा ने उनको साधु-श्रेणी में प्रविष्ट होने को प्रेरित किया और वे अपने संकल्प से विरत नहीं हुए। क्या उन्हें त्याग का अर्थ विदित था? उनके पारिवारिक जनों के लिए यह एक समस्या थी। जिस दिन वे संन्यास लेने वाले थे, उसके पूर्व पहली रात को उनके बड़े भाई मोहनलालजी ने उनको सौ रुपए का एक नोट दिया और कहा कि वह इगे अपने पास रख ले, जब कि वह उन सबसे अगले दिन बिदा ले रहे थ । प्राचार्यश्री तुलसी को यह पता था कि साधु का क्या कर्तव्य होता है और उन्होंने हंसकर पूछा-"मैं इन रुपयों का क्या करूँगा। साधु तो एक पैसा भी अपने पास नहीं रख सकता।" यह किशोर तुलसी के लिए एक कसौटी थी। उन्होंने सिद्ध कर दिया कि दुनिया के प्रलोभनों और भांगविलाम का उनके लिए कोई अर्थ नही है। उनमें प्रारम्भ से ही त्याग और संयम के गुण मौजूद थे । मागे चल कर उनका साधु-जीवन विकसित हुआ और व महान् धर्म-गरु बन गए। बाईस वर्ष की अवस्था में आचार्यश्री कालुगणी ने मुनिश्री तुलसी को अपना उत्तराधिकारी मनोनीत किया। प्राचार्य बनने के लिए यह अवस्था छोटी ही थी, किन्तु मुनिश्री तुलसी ने जो गुण विकसित कर लिए थे, उनके कारण उनका यह चुनाव सर्वथा उचित सिद्ध हुमा । संस्कृत में एक उक्ति है : गुणाः पूजास्थानं गुणिषु, न च लिगं न च वयः अर्थात् न तो प्रायु का और न लिंग का महत्व है; असली महत्त्व तो गणों का ही होता है । आचार्यश्री तुलसी भी अपने गणों के कारण अपने शिष्यों की श्रद्धा और पादर के अधिकारी बने। अणुव्रत का प्रवर्तन सन् १९४६ में उन्होंने अणुव्रत-पान्दोलन चलाया। नैतिक मापदण्डों की गिरावट के विरुद्ध यह आन्दोलन था। नैतिक पतन के पाश से राष्ट्र को मुक्त करना उसका उद्देश्य है। आज जब कि दुनिया प्राध्यात्मिक केन्द्र से दूर जा रही है. मानव का दृष्टिकोण अधिकाधिक भौतिकवादी बनता जा रहा है, नैतिक मूल्यों को विस्मृत किया जा रहा है, अणुवतमान्दोलन मनुष्य को नैतिक प्रधः-पतन के दलदल में फंसने से रोकता है और उसे प्रान्तरिक शान्ति और सुख की उपलब्धि कराता है। जैसा कि 'अणुव्रत' शब्द से ही प्रकट है, वह छोटी-छोटी प्रतिज्ञा से प्रारम्भ होता है। प्रत्येक व्यक्ति के लिए 'पूर्ण' बनना सम्भव नहीं हो सकता, किन्तु अल्प प्रारम्भ करके वह सर्वोच्च प्रादर्श को प्राप्त कर सकता है। अणुवत. मान्दोलन समाज के नैतिक चरित्र का निर्माण करना चाहता है। इस आन्दोलन के मुख्य उद्देश्य ये हैं---१. जाति, वर्ण, राष्ट्रीयता और धर्म का कोई भेद न करते हुए सब लोगों के लिए संयम का आदर्श प्रस्तुत करना और उस पादर्श के अनु
SR No.010719
Book TitleAacharya Shri Tulsi Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Dhaval Samaroh Samiti
PublisherAcharya Tulsi Dhaval Samaroh Samiti
Publication Year
Total Pages303
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, Literature, M000, & M015
File Size15 MB
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