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प्राचार्यश्री तुलसी अभिनन्दन अन्य
सार अधिकाधिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित करना; २. समाज में विश्व-शान्ति का प्रचार करने के लिए प्रचारक तैयार करना और उन्हें प्रेरित करना। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रणवत-ग्रान्दोलन अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह की पाँच प्रतिज्ञाएं लेने को कहता है । यदि मनुष्य स्वतन्त्र रूप में इन पांच व्रतों का पालन करने का प्रयत्न करे तो वह पूर्ण आदर्श को प्राप्त कर सकेगा। जीवन के हर क्षेत्र में वह इन व्रतों का पालन कर सकता है।
हम आज देखते हैं कि धर्म, भाषा, जाति और सम्प्रदाय के नाम पर लोग परस्पर लड़ रहे हैं। धर्म की भावना को लोगों ने ठीक प्रकार से नहीं समझा है। धर्म केवल मन्दिर जाने और दैनिक कर्मकाण्डों का पालन करने में नहीं है। वह इन सबसे कुछ अधिक है । वास्तविक धर्म सभी धर्मों के प्रति सहिष्णुता दिखाने में है। पूजा की विधि कुछ भी हो, उसका तात्पर्य यह है कि मनुष्य अपने को नैतिक और आध्यात्मिक दष्टि से ऊँचा उठाए और रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाए बिना यह लक्ष्य सिद्ध नहीं किया जा सकता। उदार मनोवृत्ति का परिचय
प्राचार्यश्री तुलसी ने एक धर्माचार्य के रूप में अपनी उदार मनोवृत्ति का परिचय दिया है; कारण वह कहते है कि दूसरे धर्मों के प्रति किसी को निन्दात्मक भाषा का लेखनी या वाणी द्वारा प्रयोग नहीं करना चाहिए। केवल अपने विचारों का ही प्रचार करना चाहिए । दूसरे धर्मों के प्रति सहिष्णता दिखानी चाहिए । दुसरे धर्मों के संतों और प्राचार्यों के प्रति घृणा या तिरस्कार नहीं फैलाना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति अपना धर्म या सम्प्रदाय बदल लेता है तो उसके साथ दुव्यवहार नहीं करना चाहिए और न उसका सामाजिक बहिष्कार ही करना चाहिए। धर्म के सर्वमान्य गूल तत्त्वों का यथा-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह का प्रचार करने का सामूहिक प्रयास करना चाहिए। अगर मनुष्य इन आचार-नियमों का पालन करने लगे तो वर्तमान दुनिया में महान क्रान्ति हो जायेगी।
राष्ट्र का निर्माण करने के लिए नंतिक और आध्यात्मिक पृष्ठभूमि की सदैव अावश्यकता होती है और प्रणवतअान्दोलन एक प्रकार से देश के नैतिक उत्थान का प्रान्दोलन है। जो आन्दोलन वर्तमान युग की चनौती का मामना नहीं कर सकता, वह चल नहीं सकता । अणुव्रत आन्दोलन वर्तमान युग की चुनौती का उत्तर देता है। वह लोगों को केवल भौतिक विचारों का परित्याग करने और नैतिक एवं प्राध्यात्मिक उत्थान के लिए काम करने का आह्वान करता है। सत और धर्माचार्य युग-युग से शान्ति का प्रचार करते पाए हैं; किन्तु जब तक अहिंसा और सत्य के गणों का विकास नहीं होगा,तब तक शान्ति की स्थापना नहीं हो सकती। इसमें कोई सन्देह नहीं कि यदि अणुवत-आन्दोलन के पांचो व्रतों का पालन किया जाये तो युद्धों की सम्भावना टल जायेगी। इस प्रकार यह अान्दोलन वर्तमान युग की चुनौती का समाधान है।
और जब अणुव्रत-आन्दोलन के प्रणेता आचार्यश्री तुलसी अपने प्राचार्य-पद के पच्चीस वर्ष पूरे कर रहे है, यह उचित ही है कि देश अपने इस महान् प्राचार्य के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित कर रहा है।
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