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________________ केवल इतना होता है कि चूंकि वे कोई क्रिया नहीं करते इस कारण उनकी सब चीजें सड़ती जाती है और उनकी दशा धीरे धीरे खराब होती जाती है। __यही विचार नवयुवकों पर भिन्न भिन्न प्रभाव डालता है। उनके निकट भी उत्तम संकल्प और दृढ विचार निरर्थक वस्तुएँ हैं । अतएव वे वर्तमान समयको ही धन्य समझते है । न वे किसी धर्मका पालन करते हैं, न ज्ञान और सिद्धान्तका उनपर शासन है और न वे किसी रीतिरिवाजको मानते हैं। अतएव न तो उनके जीवनका कोई उद्देश्य होता है और न उनका कोई आदर्श होता है जो सदैव उनके सम्मुख रहे । जो बात किसी समय उनके मनमें आई, चाहे वह सचरित्रताके अनुसार अच्छी हो चाहे बुरी, संसारको उपयोगी हो अथवा हानिकारक, उचित हो अथवा अनुचित, वे उसे तत्काल कर डालते हैं। उसके परिणामपर विचार करना तो बड़ी बात है, वे यह भी नहीं जानते कि, परिणाम कोई वस्तु भी है या नहीं। निन्द्य पुरुपोंपर इस विचारका यह प्रभाव पड़ता है कि वे अपनी दशाके सुधारनेको एक व्यर्थ बात समझकर केवल अपने जीवनको सुख चैनसे विताना चाहते हैं। उनकी रायमे श्रमसे और धीरे धीरे अपने कर्तव्यका पालन करनेसे कष्टके सिवा और कुछ फल नहीं होता। इच्छित पदार्थोकी प्राप्तिके लिए जो मार्ग उन्हें सबसे सरल जान पडता है वे उसे ही ग्रहण करते है । गरज यह कि श्रम और उद्योगसे उत्तम और उपयोगी फल प्राप्त करनेका विचार जिस समय मनुष्यों के दिलोंमेंसे निकल जाता है उस समय जो परिणाम होता है वह बडेसे लेकर छोटे तक सबके लिए हानिकारक है। मनुष्य एक विचित्र कलकी तरह चल रहा है, इस विचारके अनुसार कार्य करनेसे वास्तवमें मनुष्य एक विचित्र कल हो जाता है।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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