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छातीपर ओससे सींची हुई, वायुसे लहराती हुई, तरह तरहके रंगोंसे चित्रित, चारों दिशाओं मे फैली हुई खेतोंकी शोभाको अपनी ऑसे देखकर उन्हें धन्य होने दो ! हे चालकोंके रक्षक अभिभावकगण, तुम अपनी कल्पनावृत्तिको बाहे जितनी निर्जीव और अपने हृदयको चाहे जितना कठिन बना लो; परन्तु दोहाई तुम्हारी, यह बात कमसे कम लजाकी खातिर ही मत कहना कि, इसकी कुछ आवश्यकता नहीं है। अपने बच्चोंको इस विशाल विश्वमें रहकर विश्वजननीके लीलास्पर्शका अनुभव करने दो। तुम्हारे इन्स्पेक्टरोंके मुलाहिजों और परीक्षकोंके प्रश्नपत्रोंकी अपेक्षा यह कितना उपयोगी है इसका भले ही तुम अपने 'हृदयमें अनुभव न कर सकते हो, तो भी बालकोंके कल्याणके लिए इसकी बिलकुल उपेक्षा न करना । * (अपूर्ण)
ग्रन्थ-परीक्षा।
उमास्वामि-श्रावकाचार। (लेखक-यावू जुगलकिशोरजी मुख्तार, देववन्द) जैनसमाजमें उमास्वामि या उमास्वाति नामके एक बड़े भारी विद्वान् आचार्य होगये हैं, जिनके निर्माण किये हुए तत्त्वार्थसूत्रपर सर्वार्थसिद्धि, राजवार्तिक, श्लोकवार्तिक और गधहस्तिमहाभाष्यादि अनेक महत्त्वपूर्ण बड़ी बड़ी टीकायें और भाष्य बन चुके हैं। जैन सम्प्रदाज्यमें भगवान् उमास्वामिका आसन बहुत ऊँचा है और उनका पवित्रनाम बड़े ही आदरके साथ लिया जाता है। उमास्वामि महाराज श्रीकुन्दकुन्द मुनिराजके प्रधान शिष्य थे और उनका अस्तित्व विक्र। श्रीयुक्त कविवर रवीन्द्रनाथ ठाकुरके वगलालेखका अनुवाद ।