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________________ २८० कर सका हूँ उसमें से आप जो चाहेंगे वहीं देकर आपके बोझसे हलका हो सकूँगा। सेठ बहुत प्रसन्न हुआ। उसका समय बड़े आनन्दसे कटने लगा। श्रमणके सुबोधरूप रत्नोंको यह बडी ही रुचिसे हृदयमें धारण करने लगा। गाडी बराबर चली जा रही थी। लगभग एक घंटेके बाद वह एक ऐसे ढालस्थानमें पहुंचकर खड़ी हो गई कि जहाँ एक गाड़ी पड़ी थी और जिसके कारण मार्ग बंद हो रहा था। ___यह गाडी 'देवल 'नामक किसान की थी। वह उसमें चावल लादकर बनारस जा रहा था और दिन निकलनेके पहले ही वहाँ पहुँचना चाहता था। धुरीकी कील निकल जानेसे गाडीका एक पहिया निकलकर गिर पडा था। देवल अकेला था। इसलिए प्रयत्न करनेपर भी वह अपनी गाडीको सुधारकर ठीक न कर सकता था। जव सेठने देखा कि किसानकी गाडीको रास्ता परसे हटाये विना मेरा आगे बढ़ना कठिन है, तब उसे बड़ा क्रोध आया। उसने अपने नौकरसे कहा कि गाड़ीपरसे चावलोंके थैले उठाकर नीचे फेंक दे और उसे एक ओर करके अपनी गाडी आगे बढ़ा। किसानने दीनताके साथ कहा-" सेठजी, मै एक गरीव किसान हूँ। पानी पड जानेसे सड़क पर कीचड हो रहा है । थैले यदि नीचे पडेंगे, तो चावल खराब हो जायेंगे । आप जरा ठहर जायें, मैं अपनी गाडी अभी ठीक किये लेता हूँ और उसे इस ढालू जगहसे कुछ दूर आगे ले जाकर आपको रास्ता दिये देता हूँ|" परन्तु उसकी प्रार्थना पर सेठने कुछ भी ध्यान न दिया। वह अपने नौकरसे कडक कर वोला-क्या देख रहा है ? मेरी आज्ञाका शीघ्र पालन कर और गाडीको आगे बढ़ा ! नौकरने तत्काल ही आज्ञाका पालन किया ।
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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