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अभी अभी एक अच्छी वर्षा हो गई है, इससे ठडी हवा चलने लगी है। बादलोंके हट जानेसे धूप निकल आई है और उससे दिन बहुत ही सुन्दर मालूम होता है। वृक्षोके पत्ते पानीसे धुल गये है और हवाके झोके लगनेसे आनन्दमें थिरक रहे है। प्रकृतिदेवीने एक
अपूर्व ही शोभा वा
आजानेसे जब घाजा से एक बौद्ध
आगे ऊँची चढ़ाई आजानेसे जब घोडोने अपनी चाल धीमी कर दी, तब धनिकने देखा कि सड़ककी पटली परसे एक बौद्ध श्रमण नीचेकी और दृष्टि किये हुए जा रहा है। उसकी मुखमुद्रापर शान्तिता, पवित्रता और गभीरता झलक रही है। उसे देखते ही सेठके हृदयमे पूज्यभाव उत्पन्न हुआ। वह विचार करने लगा-अहा! चेष्टासे ही मालूम होता है कि यह कोई महात्मा है-पवित्रताकी मूर्ति है और धर्मका अवतार है। सज्जनोंके समागमको विद्वानोंने पारस-मणिकी उपमा दी है। जिस तरह पारसके संयोगसे लोहा सुवर्ण हो जाता है, उसी तरह सज्जनोके समागमसे भाग्यहीन भी सौभाग्यशाली हो जाता है। यदि यह साधु भी बनारसको जाता हो और मेरे साथ गाडीमे बैठना स्वीकार कर ले, तो बहुत अच्छा हो । अवश्य ही इसके समागमसे मुझे लाभ होगा। यह सोचकर सेठने श्रमण महात्माको प्रणाम किया और गाडीपर बैठ जानेके लिए अनुरोध किया। श्रमणको काशी ही जाना था, इसलिए वे गाड़ीमें बैठ गये और बोले;-आपने मेरे साथ बड़ा भारी उपकार किया। इसके लिए मैं आपका कृतज्ञ हूँ। मै बहुत समयसे पैदल चल रहा हूँ, इसलिए बहुत ही थक गया हूँ। यह तो आप जानते ही है कि श्रमण लोगोंके पास कोई ऐसी वस्तु · नहीं रहती जिसे देकर मैं आपके इस ऋणसे उऋणसे हो सकूँ। तो भी मैं परमगुरु महात्मा बुद्धदेवके उपदेशरूप अक्षय कोशसे जो कुछ संग्रह