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जैनहितैषी।
श्रीमत्परमगम्भीरस्याद्वादामोघलाञ्छनम् । जीयात्सर्वज्ञनाथस्य शासनं जिनशासनम् ॥
१० वाँ भाग] कार्तिक, श्री० वी०नि० सं० २४४०॥ १ ला अंक
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विद्यार्थीके जीवनका क्या उद्देश्य होना चाहिए ?
जिन लोगोंने मनुष्यके जीवन पर विचार किया है वे सब इस बातपर सहमत है कि बहुधा मनुष्य किसी वस्तुकी इच्छा करके उसके लिए उद्योग करते हैं किन्तु परिणाम उसके विपरीत होता है। क्योंकि प्रकृतिकी कोई शक्ति ऐसी नहीं जो पूरी तरह हमारे आधीन हो बहुतसी ऐसी शक्तियों है जो लगातार अपना कार्य किए जाती हैं परन्तु कभी कभी हमारे कामोंमें बाधा डाल देती है। इस कारणसे कभी कभी जिस कामके लिए मनुष्य उद्योग करता है उसीके विपरीत परिणाम दृष्टिगोचर होता है। यही चीज है, जिसने दैव, भाग्य, और लाचारीके खयालको लोगोंके दिलोंमें दृढताके साथ बिठा दिया है। जितनी ही लोगोंको अपने इरादों और कामोंमें सफलता होती जाती है उतना ही उनका उत्साह और कार्यसम्पादनका शौक बढ़ता जाता है। मानवी शक्ति और बुद्धि पर उनको एक प्रकारका भरोसा होता । जाता है और उनका जीवन संसारके अनुरूप होता जाता है। परन्तु