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युवक बजाए इसके कि जी तोड़कर परिश्रमके और स्वाध्यायादिमें अपने समयके उत्तम भागको व्यय करे अपना समय केवल खेलकूद
और भोगविलासमें व्यय कर देते हैं वे अपने ही लिए हानिकर नही, कितु अधिकतर उनके लिए होते हैं जो बेसमझ होते है और अल्पावस्था या अल्पबुद्धिके कारण सरलमार्गको ग्रहण कर लेते हैं। उनमें विचारशक्ति नहीं होती। इसकारण सर्व साधारण और वेसमझ लोग जिन कामोंको प्रसिद्धि और प्रतिष्ठाका कारण समझते है उनका ही ये विद्यार्थी अनुकरण करते है। अतएव सच्चरित्रता और योग्यताका उत्तम आदर्श स्थापित करना, अपने साथियोंके सुधारकी चिन्ता करना और जीवनके असख्यात कष्टो और दुःखोंका वीरतासे सामना करना ऐसा काम है जिसका परिणाम करनेवालेके लिए कुछ विशेष लाभदायक नहीं होता। जो मनुष्य विचारशील हैं वे तो सदा उसका आदर करते हैं परन्तु जो वेतमझ हैं उनमें जितनी बुद्धि और ज्ञान बढ़ता जाता है उतनी ही ऐसे मनुष्योंकी प्रतिष्ठा बढती. जाती है। यदि जन साधारण और अविवेकी पुरुष उसके कामोंको न समझें और इस लिए उसे कष्ट दें अथवा उसका विरोध करें तो उससे दुखी होना एक अवगुण है । जिन मनुष्योंकी सम्मति आदरणीय है उनकी दृष्टिमें तुच्छ होना ही वास्तवमें शोकप्रद है, किन्तु जो मनुष्य उत्तम गुण और उच्चावस्थाके जीवनसे अपरिचित हैं उनकी दृष्टिमें बुरा होना अच्छा होनेकी दलील है। .
शायद महात्मा सुकरातका कथन है और स्टोक सम्प्रदायके विद्वान् भी इसका पालन करते थे कि रात्रिको सोते समय दिन भरके कामोंपर दृष्टि डालनी चाहिए और बुरे कामो व अन्छे कामोंकी परीक्षा करनी चाहिए। यही स्वभावका बड़ा संशोधन है । साराश, विद्यार्थीका जीवन