SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 12
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मुख्य उद्देश्य यह होना चाहिए कि प्रतिदिन अपनी मानसिक और मस्तकसम्बन्धी शक्तिमें वृद्धि करे । परन्तु प्रत्येक मनुष्यके अधिकारमें यह बात नहीं है कि वह बड़ा विद्वान्, तत्त्ववेत्ता अथवा शिक्षक हो। ससारके और बहुतसे कार्य भी है जिनके करनेमें उसके समयका पदा भाग व्यय होगा; परन्तु अपनी दशा सुधारनेका ऐसा काम हे जिसको मनुष्य हर समय पूरा कर सकता है। हाँ, यह जरूर है कि कोई विद्यार्थी अपनी दशाको नहीं सुधार सकता और न दूसरोंपर उसका कोई उत्तम प्रभाव ही पड़ सकता है जबतक कि वह दृढताक साथ इस -बातका उद्योग न करे कि जीवनकी कठिनाइयोंमें अपने चरित्रको बनाए रक्यूँ और अपने कर्तव्यका भली भाँति पालन करता रहूँ। उन मनुष्योंको विद्यार्थी सज्ञा कदापि नहीं दी जा सकती जो गम्भीरतासे अपने कर्तव्यका पालन नहीं करते और अपने समन्यको एक अमूल्य धन समझनेके बदले व्यर्थ कार्यों में खर्च करते है। यदि विद्यार्थी अपने छिछोरपन, असभ्यता और आलस आदि धुरी । वासनाओंको धीरे धीरे दृढताके साथ दूर न करे और आशा यह रक्खे कि ज्यों ज्यों समय बढता जायगा मेरी दशा सुधरती जायगी तो वह उस किसानके सदृश हैं कि जो खेतमें काटे और घास बोता है और आशा रखता है कि आप ही आप उत्तम फल उसमें फल आएँगे। . बहुतसे लोग हैं जिनको न अपने कर्तव्यका विचार है, न वे मानसिक अथवा मस्तकसम्बन्धी उन्नति करते हैं और न उनमें वे उत्तम गुण हैं जिनसे मनुष्य मनुष्य कहलानेके योग्य होते हैं। उनका विद्याप्राप्ति अथवा उन्नतिकी अभिलाषा करना मातापिताके लिए एक धोखा है, सोसायटीका एक अपराध है और देशके लिए हानिकर है। जो नव
SR No.010718
Book TitleJain Hiteshi
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages373
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy