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१०९ बच्चे चले चट बाहरको॥ दुलराने खिलाने पिलानेसे था
अवकाश उन्हे न घड़ी भरको। कुछ ध्यान ही था न कबूतरको
___ कहीं काल चला रहा है शरको ।।
दिन एक बड़ा ही मनोहर था,
छवि छाई वसन्तकी थी वनमें । सब और प्रसन्नता देख पड़ी,
__ जड़ चेतनके तनमे मनमे ॥ निकले थे कपोत-कपोती कहीं,
पड़े झुंडमें, घूमते काननमें । पहुँचा यहाँ घोसले पास शिकारी, • शिकारकी, ताकसे निर्जनमें ।।
उस निर्दयने उसी पेडके पास
बिछा दिया जालको कौशलसे । बही देखके अनके दाने पड़े,
चले बच्चे, अभिज्ञ न थे छलसे ।। नहीं जानते थे कि “यहीपर है,
__कहीं दुष्ट भिड़ापड़ा भूतलसे। बस फॉसके बॉसके बन्धनमे,
___ कर देगा हलाल हमें वलसे" ||
जब बच्चे फॅसे उस जालमें जा,
तब वे घबड़ा उठे बन्धनमे ।