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सषधर्मतनों हरि आय । रच्यौ शिविका चढ़ि आप जिनाय ॥ धरे तप पाय सुकेवलयोध। दियो उपदेश सुभव्य संबोध ॥ लियो फिर मोच्छ महासुखराश । नमैं तिन भक्त सोई सुखआश ॥
घत्तानंद। नित वासववन्दत, पापनिकंदत, वासपूज्य ब्रत ब्रह्मपती। भवसंकलखंडित, आदमंडित, जै जै जै जैवंत जती ॥१४॥ ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥ सोरठा-वासपूजपद सार, जजौ दरबविधि भावसों। सो पावै सुखसार, भुक्ति मुक्तिको जो परम ॥ १५ ॥
इत्याशीर्वादः परिपुष्पांजलिं क्षिपेत् । श्रीविमलनाथ जिनपूजा।
- छंद मदावलिप्तकपोल (मात्रा २४)। सहस्रार दिवि त्यागि, नगर कम्पिला जनम लिय।