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कृतधर्मानुपनंद, मातु जयसेन धर्मप्रिय । तीन लोक वरनंद, विमल जिन विमल विमलकर।
थापों चरनसरोज, जजनके हेत भावधर ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथ जिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर । संवौषट् ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः॥२॥ ॐ ह्रीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय अत्र मम सन्निहितो भव भव । वपट् ॥३॥
अष्टक।
सोरठा छंद (मनसुखरायजीकृत)। कंचनझारी धारि, पदमद्रहको नीर ले।
त्रषा रोग निरवारि, विमल विमलगुन पूजिये ॥१॥ ॐ हीं श्रीविमलनाथजिनेन्द्राय जन्ममृत्युविनाशनाय जलं निपामीति ॥१॥ मलयागर करपूरा देववल्लभा संग घसि। हरि मिथ्यातमभूर, विमल विमलगुन जजतु हों ॥२॥
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