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नृप सुंदरके पय पायो। हम पूजत अतिसुख थायो॥३॥
ॐ हीं फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यां तपमङ्गलप्राप्ताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घ ॥ ३ ॥ वदि भादव दोइज सोहै। लहि केवल आतम जो है ॥ अनअंत गुनाकर स्वामी। नित बंदों त्रिभुवन नामी ॥४॥ ___ॐ हीं भाद्रपदकृष्णद्वितियायां केवलज्ञानमण्डिताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्धे ॥ ४॥ सितभादवचौदशि लीनों । निरवान सुथान प्रवीनों॥ पुर चंपाथानकसेती। हम पूजत निजहित हेती ॥५॥ ॐ हीं भाद्रपदशुक्लचतुर्दश्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्धं नि० ॥५॥
जयमाला। दोहा-चंपापुरमें पंचवर, कल्याणक तुम पाय। सत्तर धनु तन शोभनो, जै जै जै जिनराय ॥१॥
छंद मोतियदाम (वर्ण १२)।