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जलफल दरव मिलाय गाय गुन, आठों अंग नमाई। शिवपदराज हेत हे श्रीपति ! निकट धरों यह लाई ॥ वा०॥६॥ ॐ ह्रीं श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्धं निर्वपामीति स्वाहा ।। ६ ॥
पञ्चकल्याणक।
छंद पाईता (मागा १४)। कलि छद्र असाढ़ सुहायो । गरभागम मंगल पायौ ॥ दशमें दिवितं इत आये । शतइद्र जजे सिर नाये ॥१॥ ___ॐ ही आपारुष्णपाठयां गर्भमङ्गलमण्डिताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अर्घ निर्व० कलि चौदश फागुन जानों । जनमें जगदीश महानों। हरि मेर जजे तव जाई। हम पूजत हैं चितलाई ॥२॥ ___ ही श्रीफाल्गुनकृष्णचतुर्दश्यां जन्ममङ्गलप्राप्ताय श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्राय अभ्यं नि० तिथि चौदस फागुन श्यामा। धरियो तप श्रीअभिरामा॥
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