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जलफल आठों शुचि सार, ताको अर्घ करों। तुमको अरपों भवतार, भवतरि मोक्ष वरों॥चौ०॥६॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभादिचतुर्विशांतितीर्थकरेभ्यो अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ नि० ॥
जयमाला दोहा-श्रीमत तीरथनाथपद, माथ नाय हितहेत।
गावो गुणमाला अबै, अजर अमरपद देत ॥१॥ छन्द-जय भवतमभंजन जनमनकंजन, रंजन दिनमनि स्वच्छ करा। शिवमगपरकाशक अरिंगननाशक, चौवीसों जिनराज वरा ॥२॥ छंद पद्धरी-जय रिपभ देव रिषिगन नमंत। जय अजित जीत वसुअरि तुरंत । जय संभव भवभय करत चूर। जय अभिनंदन आनंद पूर ॥ ३॥ जय सुमति सुमतिदायक दयाल । जय पद्म पद्मा ति तन रसाल ॥ जय जय सुपास भवपासनाश । जय चन्द चन्दतनदुतिप्रकाश ॥ ४॥ जय पुष्पदंत दुतिदंत सेत। जय शीतल शीतलगुननिकेत ॥ जय श्रेयनाथ नुतसहसभुज । जय वासवपूजित वासुपुज ॥५॥ जय विमल विमलपददेनहार । जय जय अनंत गुनगन अपार ॥ जय धर्म धर्म शिवशर्म देत ।