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मनमोहन मोदक आदि, सुन्दर सद्य बने। रसपूरित प्राशुक स्वाद, जजत क्षुधादि हने ॥ चौ० ॥५॥ ॐ हीं श्रीवृषभादिवीरान्तेभ्यः क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य नि०॥ तमखंडन दीप जगाय, धारों तुमागे।
सब तिमिरमोह क्षय जाय, ज्ञानकला जागै॥ चौ० ॥६॥ ॐ ह्रीं श्रीवृपमादिवीरान्तेभ्यो मोहान्धकारविनाशनाय दीपं नि०॥
दशगंध हुतासनमाहि, हे प्रभु खेवत हों। मिस धूम करम जरि जॉहिं, तुम पद सेवत हों॥ चौ० ॥७॥ ॐ हीं श्रीवृपभादिवीरान्तेभ्योऽष्टकर्मदहनाय धूपं नि० ॥ शुचि पक्क सरस फल सार, सब ऋतुके ल्यायो। देखत हगमनको प्यार, पूजत सुख पायौ ॥ चौ०॥८॥ ॐ ह्रीं श्रीबृषभादिवीरान्तेभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं नि०॥