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करि अरघ चरचों चरन जुगप्रभुमोहि तार उतावली ॥ ६॥ ॐ ही श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अनर्यपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥
पंचकल्याणक ।
__ छंद आर्या। पुष्पोत्तर तजि आये, विमलाउर जेठकृष्ण आठकों। सुरनर मंगल गाये, मैं पूजों नासि कर्मकाठकों ॥१॥ ___ॐ ही ज्येष्ठकृष्णाटभ्यां गर्भमंगलमण्डिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्धं ॥१॥ जनमें फागुनकारी, एकादशि तीनग्यानदृगधारी॥ इख्वाकवंशतारी, मैं पूजों घोर विघ्नदुखटारी ॥२॥ ___ॐ ह्रीं फाल्गुनकृष्णकादश्यां जन्ममंगलमण्डिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ ॥२॥ भवतनभोग असारा, लख त्याग्यो धीर शुद्ध तपधारा ॥ फागुनवदि इग्यारा, मैं पूजों पाद अष्टपरकारा ॥३॥