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ॐ हीं फाल्गुनकृष्णकादश्यां निःक्रमणमहोत्सवमण्डिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अभ्यं ॥३॥ केवलज्ञान सुजान, माधवदी पूर्णतित्थको देवा। चतुरानन भवमानन, बंदौं ध्यावौं करौं सुपदसेवा ॥ ४॥ ____ॐ ही माघटष्णामावस्यायां केवलज्ञानमिण्डताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्घ ॥४॥ गिरिसमेदतें पायो, शिवथल तिथि पूर्णमासि सावनको। कुलिशायुध गुनगायो, मैं पूजों आपनिकट आवनको ॥५॥ ___ ॐ हीं श्रावणशुरूपूर्णिमायां मोक्षमंगलमण्डिताय श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अर्धं ॥५॥
जयमाला।
छंद लोलतरंग (वर्ण ११) शोभित तुंग शरीर सुजानों। चाप असी शुभलच्छन मानों॥ कंचनवर्ण अनूपम सोहै देखत रूप सुरासुर मोहै ॥ १॥
छंद पचडी (मात्रा १६) जैसे श्रेयारा जिन गुनगरिष्ठ। तुमपदजुग वायफ इष्टमिष्ट ॥ जय गिष्ट शिरोमणि
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