________________
-
#
१
यह परममोदकआदि सरस संवारि सुदर चरु लियो। तुव वेदनीमदहरन लखि, चरचों चरन शुचिकर हियौ ॥श्रे॥५॥
ॐ हीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥ संशयबिमोहविभरमतमभंजन दिनंदसमान हो।
तातें चरनढिग दीप जोऊ देहु अबिचल ज्ञान हो ॥श्रे०॥६॥ ___ॐ हीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकार विनाशनाय दीपं नि०॥ ६ ॥ वर अगर तगर कपूर चूर सुगंध भूर बनाइया।
दहि अमरजिह्वविः चरनढिग करमभरम जराइया ॥०॥७॥ ॐ ह्रीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ॥७॥ सुरलोक अरु नरलोकके फल पक्व मधुर सुहावनें।
लै भगतसहित जजौं चरन शिव परमपावन पावने ॥०॥ ॐ ही श्रीश्रेयांसनाशजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८॥ जलमलयतंदुलसुमनचरु अरु दीपधूपफलावली ।
Lutotketaketicketettekuttituttituttakutekatundatkukute
-