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श्रेयांसनाथ जिनंद त्रिभुवनवंद आनंदकंद हैं।
दुखदंदफंदनिकंद पूरनचंद जोतिअमंद हैं ॥१॥ ॐ हीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय जन्ममृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ गोशीर वर करपूर कुंकुम नीरसंग घसों सही।
भवतापभजनहेत भवदधिसेत चरन जजों सही ॥श्रे०॥२॥ ॐ हीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति ॥२॥ सितशालि शशिदुतिशुक्तिसुन्दर मुक्तिकी उनहार हैं।
भरि थार पुज धरंत पदतर अखयपद करतार हैं ॥श्रे० ॥३॥ ॐ हीं श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्चपामीति स्वाहा ॥३॥ सद सुमन सुमनसमान पावन, मलयतें मधु झकरें।
पदकमलतर धरतें तुरित सो मदनको मदखंकरैं॥श्रे०॥४॥ ॐ ही श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥
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