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श्रीश्रेयांसनाथजिनपूजा।
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पू .
छंद रूपमाला तथा गीता। विमलनृप विमलासुअन, श्रेयांशनाथ जिनंद॥
सिंघपुर जन्में सकल हरि, पूजि धरि आनंद ॥ भवबंधध्वंशनहेत लखि मैं, शरन आयौ येव ॥
थापौं चरन जुग उरकमलमें, जजनकारन देव ॥१॥ ॐ हीं श्रीश्रेयांशनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर । संवौषट् ॥१॥ ॐ हीं श्रीश्रेयांसनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ॐ ॥२॥ ॐ ही श्रीश्रेयांसनाथजिनेन्द्र ! भत्र मम सन्निहितो भव भव । वषट् ॥ ३ ॥
___ छंद गीता तथा हरिगीता । (मामा २८) कलधौतवरन उतंगहिमगिरिपदमबहत आवई ।
सुरसरितप्रासुकउदकसों भरि भृग धार चढ़ावई ॥
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