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शोभै समोसृत्य बखानि धर्म । चौँ सदा शीतल पर्म शर्म॥४॥ ___ॐ ह्रीं पौपकृष्णचतुर्दश्यां केवलज्ञानमण्डिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ ॥ ४॥ कुँवारकी आठय शुद्धबुद्धा । भये महामोक्षसरूप शुद्धा ॥ समेदतें शीतलनाथस्वामी । गुनाकर तासु पदं नमामी ॥६॥ ___ॐ ही आश्विनशुक्लाष्टम्यां मोक्षमंगलप्राप्ताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ ॥५॥
जयमाला।
छंद लोलतरंग (वर्ण ११)। आप अनंतगुनाकर राजै । वस्तुविकाशनभानु समाजै॥ मैं यह जानि गही शरना है। मोहमहारिपुको हरना है ॥१॥ दोहा-हेमवरन तन तुंग धनु, नव्वै अतिअभिराम । सुरतरुअंक निहारि पद, पुनपुन करों प्रणाम ॥२॥
छंद तोटक (वर्ण १२)। जय शीतलनाथ जिनंद वरं । भवदाघवानल मेघझरं ॥ दुखभूभृतभंजन वनसमं । भवसागर