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पञ्चकल्याणक ।
छंद इंद्रवज्रा तथा उपेंद्रवधा (वर्ण ११) आ वदी चैत सुसुगर्भमाहीं। आये प्रभू मंगलरूप थाहीं। al सेवे सची मातु अनेक भेवा। च) सदा शीतलनाथ देवा ॥१॥ ___ॐ हीं चैत्रष्णाप्टम्यां गर्भमङ्गलमण्डिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अधं ॥१॥ श्रीमाधकी द्वादशी श्याम जायो। भूलोकमें मंगलसार आयो॥ शेलेन्द्रपे इन्द्र फनिन्द्र जज्जे ।मै ध्यानधारों भवदुःख भजे ॥२॥ ___ॐ हीं माघकृष्णाद्वादश्यां जन्मंगलप्राप्ताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ ॥२॥ श्रीमाघकी द्वादशि श्याम जानों। वैराग्य पायो भवभाव हानों॥ ध्यायो चिदानंद निवार मोहा। चर्चा सदा चर्न निवारि कोहा॥
ॐ हीं माघरूणावादश्यां निःक्रमणमहोत्सवमण्डिताय श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय अघं॥॥ चतुर्दशी पोपवदी सुहायो । नाही दिना केवललब्धि पायो॥