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सुरनरवंदित मुकतपति, नमों तुम्हें शिरटेक ॥१॥ पुहुपरदन गुनवदन है, सागरतोयसमान ॥
क्योंकर कर अंजुलिनकर, करिये तासु प्रमान ॥२॥
छंद तामरस तथा नयमालिनी तथा चंडी मात्रा (मात्रा १६) पुष्पदंत जयवंत नमस्ते । पुण्यतीर्थकर संत नमस्ते ॥ ज्ञानध्यानअमलान नमस्ते। चिद्विलास सुखशान नमस्ते ॥ ३॥ भवभयभंजन देव नमस्ते मुनिगनकृतपदसेव नमस्ते ॥ मिथ्यानिशिदिनईद्र नमस्ते । शानपयोदधिचन्द्र नमस्ते ॥४॥ भवदुखतरुनि:कंद नमस्ते। रागदोपमदहंद नमस्ते ॥ विश्वेश्वर गुनभूर नमस्ते ॥ धर्मसुधारसपूर नमस्ते ॥५॥ केवल ब्रह्मप्रकाश नमस्ते । सकल चराचरभास नमस्ते ॥ विघ्नमहीधरविज्जु नमस्ते। जय ऊरधगतिरिज्जु नमरते ॥ ६ ॥ जय मकराकृतपाद नमस्ते। मकरध्वजमदवाद नमस्ते ॥ कर्मभर्मपरिहार नमस्ते। जय जय अधमउधार नमस्ते ॥ ७॥ दयाधुरंधर धीर नमस्ते । जय जय गुनगंभीर नमस्ते ॥ मुक्तिरमनिपति वीर नमस्ते। हरता भवभयपीर नमस्ते॥८॥ व्ययउतपतिथितिधार नमस्ते । निजअधार अविकार नमस्ते ॥ भन्यभवोदधितार नमस्ते। वृन्दावननिसतार नमस्ते ॥६॥
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