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घत्ता छंद (मात्रा ३२)। जय जय जिनदेवं हरिकृतसेवं, परमधरमधनधारी जी॥ मैं पूजौ ध्यावौं गुनगन गावौं, मेटो विथा हमारी जी ॥१०॥ ॐ हीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय पूर्णाधं निर्वपामीति स्वाहा ॥
छंद मदाविलिप्तकपोल। पुहुपदंतपद संत, जजैजोमन बचकाई। नाचै गावै भगति करै, शुभपरनति लाई ॥ सो पावै सुख सर्व, इंद अहिमिंद तनों वर । अनुक्रमतें निखान, लहै निहचै प्रमोदधर ॥ ११॥
इत्याशीर्वादः परिपुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् । श्रीशीतलनाथ जिनपूजा।
छंद मत्तमातंग तथा मत्तगयंद । (वर्ण २३)