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सितकातिक गाये दोइज घाये, घातिकरम परचंडाजी। केवल परकाशे भ्रमतमनाशे, सकल सारसुख मंडाजी॥ गनराज अठासी आनंदभासी, समवसरणवृषदाता जी। हरि पूजन आयो शीश नमायो, हम पूर्णा जगताताजी ॥४॥ ॐ ही कार्तिक शुक्लद्वितीयायां ज्ञानमङ्गलमण्डिताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अर्घ ॥४॥
आसिन सित सारा आठ धारा, गिरिसमेद निरवाना जी। गुन अष्टप्रकारा अनुपमधारा, जै जै कृपानिधानाजी ॥ तित इंद्र सु आयौ पूज रचायौ, चिन्ह तहां करि दीना है। मैं पूजत हों गुन ध्याय महीसौं, तुमरे रसमें भीना है ॥५॥ ॐ हीं आश्विनशुक्लाष्टम्यां मोक्षमङ्गलमण्डिताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अर्घ ॥५॥
जयमाला दोहा-लच्छन मगर सुश्वेत तन, तुंग धनुष शतएक ॥
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