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में पूजो ध्यावों भगतिबढ़ावौं, करो मोहि भवपाराजी ॥१॥ ही फाल्गुनकृष्णनयम्यां गर्भमङ्गलप्राप्ताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अर्ध ॥ १ ॥ मंगसिर सितपच्छं तरिवा स्वच्छं, जनमे तीरथनाथाजी। तब ही चवभेवा निरजर येवा, आय नये निजमाथाजी॥ सुरगिरनहवाये, मंगलगाये, पूजे प्रीति लगाईजी। मैं पूजों ध्यावौं भगतवढावौं, निजनिधिहेत सहाईजी ॥२॥ ॐ हीं मार्गशीर्षशुक्लप्रतिपदि जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अर्घ ॥ ३॥ सित मँगसिरमासा तिथिसुखरासा, एकमके दिन धारा जी। तप आतमज्ञानी आकुलहानी, मौनसहित अविकाराजी ॥ सुरमित्र सुदानीके घरआनी; गो-पय-पारन कीना है। तिनको मैं बन्दौं पापनिकंदों, जो समतारसभीना है ॥३॥ ॐ ही मार्गशीर्षशुक्लप्रतिपदि तपमङ्गलमण्डिताय श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय अर्घ ॥३॥