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ॐ ही श्रीपुष्पदन्तजिनेद्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीती स्वाहा ॥७॥ श्रीफल मातुलिंग शुचि चिरभट, दाडिम आम मँगाय। तासों तुमपदपदम जजत हों, विधनसघन मिट जाय ॥मेरी०॥८॥ __ॐ हीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥८॥ जल फल सकल मिलाय मनोहर, मनवचतन हुलसाय ॥ तुमपद पूजों प्रीति लायकै, जय जय त्रिभुवनराय ॥मेरी॥६॥ ॐ ह्रीं श्रीपुप्पदन्तजिनेन्द्राय अनर्घ्यपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥ ६ ॥
पञ्चकल्याणक।
___ छंद स्वयंभू (मात्रा ३२ )। नवमीतिथिकारी फागुन धारी, गरभमांहिं थितिदेवाजी।
तजि आरणथानं कृपानिधानं, करत सची तितसेवाजी ॥ रतननकी धारा परमउदारा, पस्यो व्योमतें साराजी॥
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