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स्वेतवरन मनहरन तुम्हें थापों त्रिवार नुत ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर । संवौषट् ॥ ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्रय ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ॥ ॐ ह्रीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव ॥ वषट् ॥
चाल होली, ताल जत्त। मेरी अरज सुनीजे, पुष्पदन्त जिनराय, मेरी ॥ टेक ॥ हिमवनगिरिगतगंगाजलभर, कंचनभृग भराय । करमकलंक निवारनकारन, जजों, तुम्हारे पाय ॥मेरी० ॥१॥ ___ ॐ हीं श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ बावन चंदन कदलीनंदन, कुंकुमसंग घसाय । चरचों चरन हरन मिथ्यातप, वीतराग गुणगाय ॥ मेरी० ॥२॥
ॐ ह्री श्रीपुष्पदन्तजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ शालि अखंडित सौरभमंडित, शशिसम द्युति दमकाय ।
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