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ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय पूर्णाधं निर्वपामीति स्वाहा ॥
छंद चौबोला। आटों दरब मिलाय गाय गुण, जो भविजन जिनचंद जडें ॥
ताके भवभवके अघ भाजै, मुक्तासारसुख ताहि सजै ॥२०॥ जमके त्रास मिटै सब ताके, सकल अमंगल दूर भनें। वृन्दावन ऐसो लखि पूजत, जाते शिवपुरि राज र0 ॥२१॥
इत्याशीर्वादः परिपुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् । श्रीपुष्पदन्तजिनपूजा।
छंद मदावलिप्तकपोल तथा रोड़क (मात्रा २४) । पुष्पदंत भगवंत संत सुजपंत तंत गुन ।
महिमावंत महंत कंत शिवतियरमंत मुन ॥ काकंदीपुर जनम पिता सुग्रीव रमासुत ।
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