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निजध्यानविषै लवलीन भये। धनि सो दिन पूजत विघ्न गये ॥३॥ ___ॐ ही पौषकृष्णौकादश्यां निःक्रमणमहोत्सवमण्डिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ ॥३॥ कर केवलभानु उद्योत कियो। तिहुं लोकतणों भ्रम मेट दियो॥ कलिफाल्गुणसप्तमी इन्द्र जजे ॥ हम पूजहिं सर्व कलंक भजे ॥४॥ ___ॐ हीं फाल्गुनकृष्णसप्तभ्यां केवलज्ञानमंडिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ ॥४॥ II सित फाल्गुण सप्तमि मुक्ति गये ॥ गुणवंत अनंत अबाध भये ॥ हरि आय जजें तित मोदधरे॥ हम पूजत ही सब पाप हरे ॥५॥ ॐ हीं फाल्गुनशुक्लसप्तम्यां मोक्षमंगलमण्डिताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ ॥५॥
जयमाला । दोहा-हे मृगांकअंकितचरण, तुम गुण अगम अपार ।
गणधरसे नहिं पार लहि, तौ को वरनत सार ॥१॥ पै तुम भगति हिये मम, प्रेरै अति उमगाय ।
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