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ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ ८॥ सजि आठों दरब पुनीत, आठों अंग नमों।
पूजों अष्टमजिन मीत, अष्टम अवनी गमों॥श्री०॥६॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अनयंपदप्राप्तये अध्यं निर्वपामीति स्वाहा ॥
पंचकल्याणक ।
छंद तोटक (वर्ण १२)। कलि पंचमचैत सुहात अली । गरभागममंगल मोद भली ॥ हरि हर्षित पूजत मातु पिता । हम ध्यावत पावत शर्मसिता ॥१॥ ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णपञ्चभ्यां गर्भमङ्गलप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अधं निर्वपामीति ॥ १॥
कलि पौषइकादशि जन्म लयो। तब लोकविषै सुखथोक भयो॥ । सुरईश जज गिरशीश तबै । हम पूजत हैं नुतशीस अबै ॥२॥ ____ॐ ह्रीं पौपकृष्णैकादश्यां जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अर्घ ॥२॥ तप दुद्धर श्रीधर आप धरा । कलिपौष इग्यारसि पर्व वरा ॥