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तासों पद पूजन चंग, कामविथा जावै ॥४॥ ॐ हीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय वामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामि ॥४॥ नेवज नानापरकार, इंद्रियबलकारी।
सो लै पद पूजों सार, आकुलताहारी ॥ श्री० ॥५॥ ॐ हीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्र क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामि ॥५॥
तमभंजन दीप सँवार, तुमढिग धारतु हों।
मम तिमिरमोह निरवार, यह गुन धारतु हों॥श्री०॥६॥ ॐ हीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दीपं निर्वपामि ॥ ६ ॥ दशगंधहुतासनमाहिं हे प्रभु खेवतु हौं।
__ मम करम दुष्ट जरि जॉहि, यात सेवतु हौं ॥श्री०॥७॥ ॐ हीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीनि स्वाहा ॥७॥ अति उत्तमफल सु मंगाय, तुम गुनगावत हौं।।
पूजों तनमन हरपाय, विधन नशावतु हौं ॥श्री०॥८॥
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