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गंगाहृदनिरमलनीर, हाटकभृगभरा। तुम चरन जजों वरवीर, मेटो जनमजरा॥ श्रीचंदनाथदुति चंद, चरनन च'द लगै। मनवचतन जजत अमंद, आतमजोति जगै॥१॥ ॐ हीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामि० ॥ १॥ श्रीखंडकपूर सुचंग, केशररंग भरी। घसि प्रासुकजलके संग भवआतप हरी ॥ श्री० ॥२॥ ॐ ह्रीं श्रीचन्द्रप्रभजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चंदनं निर्वामि ॥२॥ तंदुल सित सोमसमान, सम लय अनियारे। दिय पुंज मनोहर आन, तुमपदतर प्यारे॥ श्री० ॥३॥ ॐ हीं चन्द्रप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षप्तान निर्वपामि ॥३॥
सुरद्रुमके सुमन सुरंग, गधिन अलि आवै।