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केइ गुम द्वम सुदम दम मृदंगनि धुनै । केइ झल्लरि झनन झझनन झझनै ॥ केइ संसागृदि संसागृदि सारांगि सुर । केई वीनापटह वंसि बाजै मधुर ॥ ६॥ केइ तनननन तनननन ताने पुरें। शुद्ध उच्चारि सुर केइ पाठे फुरै ॥ केइ झुकि झुकि फिरै चक्रसी भानमी । धृगततां ध्रुगतगत परम शोभा बनी ॥१०॥ केइ छिन निकट छिन दूर छिन थूल लघु । धरत वैक्रियकपरभावसों तन सुभगु ॥ केइ करताल करलालतलमें धुनै। तत वितत घन सुखरि जात बाजै मुनै ॥ ११॥ इन्हें आदिक सकल सोज सँग धारिक। आय पुर तीन फेरी करी प्यारकै ॥ सचिय तबजाय परसूतथल मोदमें। मातु करि नींद लीनों तुम्हें गोदमें ॥ १२॥ आनगिरवाननाथहिं दियो हाथमे । छत्र अर चमर वर हरि करत माथमे ॥ चढ़े गजराज जिनराज गुन जापियो । जाय गिरिराजपांडुकशिला थापियो ॥ १३॥ लेय पंचमउदधिउदक करकर सुरनि । सुरन कलशनि भरे सहित चर्चित पुरनि ॥ नहस अरु आठ शिर कलश ढारे जबैं । अघघ घघ घघघघघ भभभ भभ भौ तबैं॥१४॥ धधध धध धधध धध धुनि मधुर होत है। भव्यजनहंसके हरश उद्योत है ॥ भयै इमि न्हौन तब सकल गुन रंगमें । पोंछि भंगार कीनों सची अंगमें ॥१५॥ आनि पितुसदन शिशु सौपि हरि थल गयो। बालयय तरुन लहि राजसुख भोगयो॥ भोग तज जोग गहि चार अरिकों हने। धारि केवल परमधरम दुइविधि भने ॥ १६ ॥ नाशि अरि शेष शिवथानवासी भये। झानद्गशर्मबीरजअनंते
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