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लये ॥ सो जगतराज यह अरज उर धारियो । धरमके नंदको भवउदधि तारियो ॥१७॥
छंद घत्तानंद। जय करुनाधारी शिवहितकारी, तारनतरनजिहाजा हो। सेवक नित बंदै मनआनंदै, भवभयमेटनकाजा हो ॥ १८ ॥ ___ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय पूर्णाधं निर्वपामीति स्वाहा ॥ दोहा-श्रीसुपार्श्व पदजुगल जो, जजै पढ़े यह पाठ। अनुमोदै सो चतुर नर, पावै आनँद ठाठ ॥ १६ ॥
___ इत्याशीर्वादाय पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत् । श्रीचन्द्रप्रभजिनपूजा। छप्पय–अनौष्ठय जमकालंकार तथा शब्दालंकार शान्तरस। चारुचरन आचरन, चरन चितहरनचिहनचर। चंदचंदतनचरित, चंदथल चहत चतुर नर ॥