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लहत स्वर्गपदराज, तहाँतें चय इत आई। चक्रीको सुख भोगि, अंत शिवराज कराई॥८॥
इत्याशीर्वाद। इतिश्रीपद्मप्रभजिन पूजा समाप्त । सुपार्श्वनाथजिनपूजा।
छंद हरिगीता तथा गीता। जय जय जिनिंद गनिंद इंद, नरिंद गुन चिंतन करै। तन हरीहर मनसम हरत मन, लखत उर आनंद भरै। नृप सुपरतिष्ठ वरिष्ठ इष्ट, महिष्ठ शिष्ठ पृथी प्रिया। तिन नंदके पद वंद वृद, अमंद थापत जुतक्रिया ॥१॥ ॐ ही सुपार्श्वनाथजिनेन्द्र अत्र अवतर अवतर । संवौषट् ॥१॥ ॐ हीं सुपार्श्वनाथ जिनेन्द्र अत्र तिष्ठ तिष्ठ । 3. ॥२॥
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