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लघु भापत । करि थिति फिर शिवआनँद चाखत । ए उतकृष्ट सकलगुण थानी । तथा जघन मध्यम जे प्रानी ॥१२॥ तीनो लोकसदनके वासी। निज गुनपरजभेदमय राशी ॥ तथा और द्रव्यनके जेते । शुनपरजाय भेद हैं तेते ॥१२॥ तीनों कालनते जु अनंता । सो तुम जानत | जुगणत संता॥ सोई दिव्यवचनके द्वारे । दै उपदेश भवकि उद्धारे ॥१४॥ फेरि अचलथल। वासा कीनों । गुन अनंत निजआनॅदभीनों ॥ चमरदेहते किंचित ऊनो । नरआकृति तित हैं नित गूनो ॥१५॥ जय जय सिद्धदेव हितकारी । बार बार यह अरज हमारी ॥ मोकों दुख' सागरतें । काढ़ो वृदावन जाँचतु हैं ठाढ़ो ॥१६॥
छंद घत्ता। जय जय जिनचंदा पदमानंदा, परमसुमतिपदमाधारी ॥ जय जनहितकोरी दयाविचारी, जय जय जिनवर अधिकारी ॥ ॐ हीं श्रीपद्मप्रभजिनेन्द्राय महाधु निर्व पामीति स्वाहा ॥
छंद रोड़क। जजत पद्मपद्मसन ताके सुपद्म अत। होत वृद्ध सुतमित्र सकल आनंदकंद शत॥
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