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ॐ हीं सुपार्श्वनाथजिनेन्द्र अत्र ममसन्निहितो भव भव । वषट् ॥ ३॥
चाल धानतरायजीकृत सोलहकारणभापाष्टककी। तुम पद पूजों मनवचकाय, देव सुपारस शिवपुरराय ॥
दयानिधि हो, जय जगबंधु दयानिधि हो॥ उज्जल जल शुचि गंध मिलाय, कंचनझारी भरकर लाय। दयानिधि हो, जयजगबंधु दयानिधि हो ॥ तुम० ॥१॥ ___ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथजिनेन्द्राय जन्ममृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामि ॥
मलयागरचंदन घसि सार, लीनो भवतपभंजनहार। all दयानिधि हो, जयजगबंधु दयानिधि हो। तुम० ॥२॥ ___ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय भवतापविनाशाय चंदनं निर्वपामीति ॥२॥ देवजीर सुखदास अखंड । उज्जल जलछालित सित मंड ॥ दयानिधि हो, जयजगबंधु दयानिधि हो । तुम०॥३॥ ॐ ह्रीं श्रीसुपार्श्वनाथ जिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्व पामीति ॥३॥
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