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पद्मप्रभजिनपूजा।
छंद रोड़क (मदाविलिप्तकपोल)। पदमरागनिवरनधरन, तनतुंग अढ़ाई।
शतक दंड अघखंड, सकल सुर सेवत आई ॥ धरनि तात विख्यात सुसीमाजूके नंदन।
पदमचरन धरि राग सु थापो इतकरि वंदन ॥१॥ ॐ हीं श्रीपभप्रभजिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतरः। संवौषट् । ॐ ह्रीं श्रीपभप्रभजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः। ॐ ह्रीं श्रीपशप्रभजिनेन्द्र । अत्र मम सन्निहितो भव जव । वपट् ।
अष्टक।
चाल होलीकी-ताल जत्त। पूजों भावसों, श्रीपदमनाथपद सार, पूजों भावसों ॥ टेक॥
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