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गंगाजल अति प्रासुक लीनों, सौरभ सकल मिलाय ॥ मनवचतन त्रयधार देत ही, जनमजरामृत जाय।
पूजोंभावसों, श्रीपदमनाथपद लार, पूजों भावसों॥१॥ ॥ ॐ डी श्रीपमप्रभजिनेन्द्राय जन्ममृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामि ॥ मलयागर कपूर चंदन घसि, केशररंग मिलाय।
भवतपहरन चरनपर वारो, मिथ्याताप मिटाय ॥ पू०॥२॥ ॐ ही श्रीपदाप्रभजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चन्दनं निर्वपामि ॥ तंदुल उज्जल गंधअनीजुत, कनकथार भर लाय ।
पंज धरों तुब चरनन आगें, मोहि अखयपद दाय ॥पू०॥३॥ ॐ ही श्रीपाप्रभजिनेन्द्राय अक्षयपद्प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामि ॥ पारिजात मंदार कलपतरुजनित, सुमन शुचि लाय । ___ समरशूल निरमूलकरनकों, तुम पद पद्म चढ़ाय ॥पू०॥ ४॥
ॐ ही श्रीपानभजिनेन्द्राय कामवाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामि ॥
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