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अवणं अधणं अमणं अकणं । अभणं अतर्णं अशण सुशण ॥
अनेक सदेकं चिदेकं विवेक । अखंड सुमंडं प्रचंडं तदेर्फ ॥१५॥ सुपर्म सुधर्म सुशर्म अकर्म । अनंतं गुनाराम जैवन्त वर्म ॥ नमैं दास वृदावन शर्न आई । सबै दुःख मोहि लीजै छुड़ाई ॥ १६ ॥
छंद घत्तानंद। तुव सुगुन अनंता ध्यावत संता, भ्रमतमभंजनमातंडा। सतमतकरचंडा भवि-कजमंडा, कुमतिकुबल इन गन हंडा ॥१७॥ ॐ हीं सुमतिजिनेन्द्राय महा निर्वपामीति स्वाहा ॥
छंद रोड़क। सुमतिचरन जो जजै, भबिक जन मनवचकाई ।
तासु सकलदुखदंद फंद ततछिन छय जाई॥ पुत्रमित्र धन धान्य, शर्म अनुपम सो पावै ॥ बृन्दावन निर्वान, लहै जो निहचै ध्यावै ॥१८॥
इत्याशीर्वाद पुष्पाञ्जलि क्षपेत् ।
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