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गये बोधि ताही समैइन्द्र आयो । धरे पालकीमें सु उद्यान ल्यायो॥७॥ नमें सिद्धको केशलोंचे सवै ही। धखो ध्यान शुद्ध जुधाती हनै ही।
लह्यो केवलं औ समोसन साजं । गणाधीश जु एक सौ सोलराजं ॥ ८॥ खिरै शब्द तामें छहौं द्रव्य धारे । गुनौपर्जउत्पादव्यध्रौव्य सारे ॥
तथा कर्म आठों तनी तित्थि गाजं । मिल जासुके नाशतेंमोच्छराज ॥ धर मौहिनी सत्वरं कोड़कोड़ी। सरित्पत्प्रमाणं थितिं दीर्घ जोड़ी ॥
अवनिगुग्वेदिनी अंतरायं। धरै तीसकोड़ाकुड़ी सिंधुकायं ॥ १० ॥ नथा नाम गीतं कुड़ाकोड़ी वीसं । समुद्रप्रमाणं धरे सत्तईसं॥
सु तैंतीसन्धिं धरे आयु अब्धिं । कहें सर्व कर्मोतनी वृद्धलब्धिं ॥ ११॥ जघन्यप्रकार धरें भेद ये ही। मुहत्तं वसू नामगोतं गने ही॥
तथा शानद्गुग्मोह प्रत्यूह आयं । सुअंतर्मुहत्तं धरैधित्ति गायं ॥ १२ ॥ तथा वेदिनी वारहें ही मुहत्तं । धरै थित्त ऐसें भन्यो न्यायजुत्तं ॥ ___ उन्हें आदि तत्त्वार्थ भाव्यो अशेसा । लह्यो फेरि निर्वान माहीं प्रवेसा ॥१३॥ अनंत महंत सुरतं सुतंतं । अमंदं अफंदं अनंद अभंतं ॥ ।
अलक्षं विलक्षं सुलक्षं सुदक्षं । अनक्षं अवक्षं अभक्षं अतक्षं ॥१४॥
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