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सुमति देहु विनती करों, सुमति विलंब कराय ॥१॥ दयावेलि तह सुगुननिधि, भविक-मोद गम चंद ॥
सुमतिसतीपति सुमतिकों, ध्यावो धरि आनंद ॥२॥ पंच परावरतन हरन, पंचसुमति सित दैन । पंचलब्धिदातारके, गुन गाऊं दिनरैन ॥३॥
छंद भुजंगप्रयात। पिता मेघराजा सवै सिद्धकाजा। जपें नाम जाको सवै दुःख भाजा॥
___महासूर इक्ष्वाकवंशी विराजे । गुणग्राम जाको सवै ठौर छाजै ॥४॥ निन्होंके महापुण्यसों आप जाये । तिहृलोकमें जीव आनंद पाये॥
सुनासीर ताही घरी मेरु धायो। क्रिया जन्मकी सर्व कीनी यथा यों॥ बहुर्तातकों सोंपि संगीत कीनों । नमें हाथ जोरौं भलीभक्ति भीनों ।
विताई दश लाख ही पूर्व बाले । प्रजा लाख उन्तीस ही पूर्व पाले ॥६॥ कछू हेतुने भावना वार भाये । तहाँ ब्रह्मलोकांनके देव आये ॥
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