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पंचमउदधितनों सम उज्जल, जल लीनों वरगंध मिलाय। कनककटोरीमाहिं धारिकरि, धार देहं सुचि मनवचकाय ॥ हरिहरवंदित पापनिकंदित, सुमतिनाथ त्रिभुवनके राय। तुमपदपद्म सद्मशिवदायक, जज़त मुदितमन उदित सुभाय ॥१॥
ॐ हीं श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामि ॥ मलयागर घनसार धसौं वर, केशर अर करपूर उलाय । भवतपहरन चरन परवारों, जनमजरामृतताप पलाय ॥ हरि० ॥२॥ ___ॐ ही श्रीसुमतिनाथजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामि ॥ शशिसमउज्जल सहितगंधतल, दोनों अनी शुद्ध सुखदास। सो ले अखयसंपदाकारन, पंज धरों, तुमचरननपास ॥ हरि० ॥३॥
ॐ हीं श्रीनुमनिनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामि ॥ कमलकेतुकी बेल चमेली, करना अरु गुलाव महकाय ।
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